भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उसने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल उसने सुकूत-ए-शब में भी अपना पया...) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | उसने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया | ||
+ | हिज्र की रात बाम पर माहे-तमाम रख दिया | ||
− | + | आमद-ए-दोस्त की नवीद कू-ए-वफ़ा में आम थी | |
− | + | मैनें भी इक चिराग़-सा दिल सर-ए-शाम रख दिया | |
− | + | देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं | |
− | + | मैनें तो सब हिसाब-ए-जाँ बरसर-ए-आम रख दिया | |
− | + | उसने नज़र-नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे | |
− | मैनें तो | + | मैनें तो उसके पाँओं में सारा कलाम रख दिया |
− | + | शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मैकशी रही | |
− | मैनें | + | उसने जो फेर ली नज़र मैनें भी जाम रख दिय |
− | + | और "फ़राज़" चाहिये कितनी मुहब्बतें तुझे | |
− | + | के माँओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया | |
− | + | </poem> | |
− | और "फ़राज़" चाहिये कितनी मुहब्बतें तुझे | + | |
− | के माँओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया< | + |
20:09, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण
उसने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माहे-तमाम रख दिया
आमद-ए-दोस्त की नवीद कू-ए-वफ़ा में आम थी
मैनें भी इक चिराग़-सा दिल सर-ए-शाम रख दिया
देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं
मैनें तो सब हिसाब-ए-जाँ बरसर-ए-आम रख दिया
उसने नज़र-नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे
मैनें तो उसके पाँओं में सारा कलाम रख दिया
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मैकशी रही
उसने जो फेर ली नज़र मैनें भी जाम रख दिय
और "फ़राज़" चाहिये कितनी मुहब्बतें तुझे
के माँओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया