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"फिर उसी राहगुज़र पर शायद / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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20:34, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण
फिर उसी राहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद
जान पहचान से ही क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "फ़राज़"
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद