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"भले दिन आये तो आज़ार बन गया आराम / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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मिटा के फिर तो बनाने पर अब नहीं काबू। | मिटा के फिर तो बनाने पर अब नहीं काबू। | ||
वो सर झुकाए खड़े है, क़रीब मदफ़न के॥ | वो सर झुकाए खड़े है, क़रीब मदफ़न के॥ | ||
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00:23, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
भले दिन आये तो आज़ार बन गया आराम।
क़फ़स के तिनके भी काम आ गए नशेमन के॥
मिटा के फिर तो बनाने पर अब नहीं काबू।
वो सर झुकाए खड़े है, क़रीब मदफ़न के॥