"मालिक का छत्ता / आर. चेतनक्रांति" के अवतरणों में अंतर
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आसमान काला पड़ रहा था | आसमान काला पड़ रहा था | ||
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धरती नीली | धरती नीली | ||
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जब हमारे मालिक ने | जब हमारे मालिक ने | ||
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अपने मासिक दौरे पर पहला क़दम दफ़्तर में रखा | अपने मासिक दौरे पर पहला क़दम दफ़्तर में रखा | ||
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:दफ़्तर में बहुत सारी कोटरें थीं | :दफ़्तर में बहुत सारी कोटरें थीं | ||
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शुरू में आदमी भरती किए गए थे | शुरू में आदमी भरती किए गए थे | ||
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मालिक गुज़रा तो | मालिक गुज़रा तो | ||
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हर कोटर कसमसाई, थोड़ी-सी तड़की | हर कोटर कसमसाई, थोड़ी-सी तड़की | ||
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जैसे आकाश में बिजली कौंधी हो | जैसे आकाश में बिजली कौंधी हो | ||
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और उनकी उपस्थिति को महसूस किया गया | और उनकी उपस्थिति को महसूस किया गया | ||
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:दूर से देखो तो समाज मधुमक्खियों के छत्ते की तरह दिखाई देता है | :दूर से देखो तो समाज मधुमक्खियों के छत्ते की तरह दिखाई देता है | ||
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:बंद और ठोस | :बंद और ठोस | ||
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:लेकिन उसमें रास्ते होते हैं, बहुत सारे छेद | :लेकिन उसमें रास्ते होते हैं, बहुत सारे छेद | ||
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मालिक उन सबसे गुज़रकर यहाँ तक पहुँचा है | मालिक उन सबसे गुज़रकर यहाँ तक पहुँचा है | ||
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उसके बदन से शहद टपक रहा है | उसके बदन से शहद टपक रहा है | ||
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सब उसके पीछे हैं | सब उसके पीछे हैं | ||
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बस, एक चटखारा | बस, एक चटखारा | ||
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हम समर्थ थे | हम समर्थ थे | ||
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और सुलझे हुए | और सुलझे हुए | ||
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और नए फ़ैशन के कपड़ों में सजे | और नए फ़ैशन के कपड़ों में सजे | ||
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लेकिन उस क्षण हमारे ऊपर | लेकिन उस क्षण हमारे ऊपर | ||
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हमारा वश नहीं रह गया था | हमारा वश नहीं रह गया था | ||
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हम किसी भी पल सो सकते थे | हम किसी भी पल सो सकते थे | ||
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हम किसी भी पल रो सकते थे | हम किसी भी पल रो सकते थे | ||
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वे कुछ कह देते तो | वे कुछ कह देते तो | ||
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हम तालियाँ बजाकर स्वागत करते | हम तालियाँ बजाकर स्वागत करते | ||
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लेकिन वे कुछ नहीं बोले | लेकिन वे कुछ नहीं बोले | ||
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और चले गए। | और चले गए। | ||
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00:40, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
आसमान काला पड़ रहा था
धरती नीली
जब हमारे मालिक ने
अपने मासिक दौरे पर पहला क़दम दफ़्तर में रखा
दफ़्तर में बहुत सारी कोटरें थीं
शुरू में आदमी भरती किए गए थे
मालिक गुज़रा तो
हर कोटर कसमसाई, थोड़ी-सी तड़की
जैसे आकाश में बिजली कौंधी हो
और उनकी उपस्थिति को महसूस किया गया
दूर से देखो तो समाज मधुमक्खियों के छत्ते की तरह दिखाई देता है
बंद और ठोस
लेकिन उसमें रास्ते होते हैं, बहुत सारे छेद
मालिक उन सबसे गुज़रकर यहाँ तक पहुँचा है
उसके बदन से शहद टपक रहा है
सब उसके पीछे हैं
बस, एक चटखारा
हम समर्थ थे
और सुलझे हुए
और नए फ़ैशन के कपड़ों में सजे
लेकिन उस क्षण हमारे ऊपर
हमारा वश नहीं रह गया था
हम किसी भी पल सो सकते थे
हम किसी भी पल रो सकते थे
वे कुछ कह देते तो
हम तालियाँ बजाकर स्वागत करते
लेकिन वे कुछ नहीं बोले
और चले गए।