भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुख, प्रेम और समय / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२ | |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२ | ||
}} | }} | ||
+ | आलोक श्रीवास्तव-२ | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
बहुत से शब्द | बहुत से शब्द | ||
बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ | बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
अपने दुख कम प्रतीत होते हैं तब | अपने दुख कम प्रतीत होते हैं तब | ||
और अपना प्रेम कहीं बड़ा । | और अपना प्रेम कहीं बड़ा । | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
10:45, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण
आलोक श्रीवास्तव-२
बहुत से शब्द
बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ
बहुत बाद में समझ में आते हैं
दुख के रहस्य
ख़त्म हो जाने के बाद कोई सम्बन्ध
नए सिरे से बनने लगता है भीतर
...और प्यार नष्ट हो चुकने
टूट चुकने के बाद
पुनर्रचित करता है ख़ुद को
निरंतर पता चलती है अपनी सीमा
अपने दुख कम प्रतीत होते हैं तब
और अपना प्रेम कहीं बड़ा ।