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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ ; ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी ! / फ़राज़
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
क़ुर्बतों<ref>सामीप्य</ref> में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेह्र<ref>निर्दयी</ref> कि रोने के बहाने माँगे
क़ुर्बतों<ref>सामीप्य</ref> में अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी जुदाई के ज़माने माँगे <br>चुके दिल वो बेमेह्र<ref>निर्दयी</ref> कि रोने के बहाने और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे <br><br>
अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके यही दिल था कि तरसता था मरासिम <brref>प्रेम-व्यवहार,सम्बन्ध</ref>के लिएऔर मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगेअब यही तर्के-तल्लुक़<brref>संबंध-विच्छेद<br/ref> के बहाने माँगे
यही दिल था कि तरसता था मरासिम <ref>प्रेम-व्यवहार,सम्बन्ध</ref>के लिए<br>अब यही तर्के-तल्लुक़<ref>संबंध-विच्छेद</ref> के बहाने माँगे<br><br>  हम न होते तो किसी और के चर्चे होते <br>खल्क़त-ए-शहर<ref>शहरी जनता</ref> तो कहने को फ़साने माँगे <br><br>
ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा
<br>
और तू है कि सदा आइनेख़ाने<ref>वह भवन जिसके चारों ओर दर्पण लगे हों</ref>माँगे
<br><br>
दिल किसी हाल पे क़ानेक़ाने<ref>आत्मसंतोषी</ref> ही नहीं जान-ए-"फ़राज़"<br>मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे{{KKMeaning}}<br><br/poem>