भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी रुसवाई तेरे नाम / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
− | अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ | + | <poem> |
− | एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ | + | अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ |
+ | एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या-क्या देखूँ | ||
− | नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ | + | नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ |
− | आँख खुल जाये तो तन्हाई की | + | आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहरा देखूँ |
− | शाम भी हो गई | + | शाम भी हो गई धुँधला गई आँखें भी मेरी |
− | भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ | + | भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ |
− | सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ | + | सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ |
− | एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ | + | एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ |
− | मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह | + | मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह |
− | अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ | + | अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ |
− | तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब | + | तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब |
− | जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ | + | जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ |
− | मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार | + | मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार |
− | ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ | + | ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ |
− | तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात | + | तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात |
− | जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ < | + | जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ |
+ | </poem> |
20:02, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या-क्या देखूँ
नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहरा देखूँ
शाम भी हो गई धुँधला गई आँखें भी मेरी
भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता देखूँ
सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूँ
मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह
अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ
तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब
जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ
मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ
तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात
जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ