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"सब जैसा का तैसा / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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कुछ भी बदला नहीं फलाने!
 
कुछ भी बदला नहीं फलाने!

17:06, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: कैलाश गौतम

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कुछ भी बदला नहीं फलाने!

सब जैसा का तैसा है

सब कुछ पूछो, यह मत पूछो

आम आदमी कैसा है।


क्या सचिवालय क्या न्यायालय

सबका वही रवैया है

बाबू बड़ा न भैय्या प्यारे

सबसे बड़ा रुपैया है

पब्लिक जैसे हरी फसल है

शासन भूखा भैंसा है।


मंत्री के पी. ए. का नक्शा

मंत्री से भी हाई है

बिना कमीशन काम न होता

उसकी यही कमाई है

रुक जाता है, कहकर फौरन

`देखो भाई ऐसा है'।


मन माफिक सुविधायें पाते

हैं अपराधी जेलों में

कागज पर जेलों में रहते

खेल दिखाते मेलों में

जैसे रोज चढ़ावा चढ़ता

इन पर चढ़ता पैसा है।