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"सखी मोरे सैंया नहिं आये / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
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सखी मोरे सैंया नहिं आये, बीति गई सारी रात।
दीपक-जोति मलिन भई सजनी, होय गयो परभात।
देखत बाट भई यह बिरियाँ, बात कही नहिं जात।
’हरीचंद’ बिन बिकल बिरहिनी ठाढ़ी ह्वै पछितात॥