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02:04, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
पानी का स्वरूप ही शीतल है
बाग में नल से फूटती उजली विपुल धार
कल-कल करता हुआ दूर-दूर तक जल
हरी में सीझता है
मिट्टी में रसता है
देखे से ताप हरता है मन का, दुख बिनसता है।