भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर बंदा हूँ / सौदा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} <poem> न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर ब…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:24, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

न क़स्दे-काबा है दिल में, न अज़्मे-दैर बंदा हूँ
गले में डालकर रस्सी, जिधर चाहे उधर ले जा
निहाल-आसा नहीं हैं ख़ुर्रमी माटी में ग़ुरबत के
वतन से मुश्ते-ख़ाक ऐ दिल, क़दम पर बाँधकर ले जा