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"उसकी आवाज़ / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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21:46, 14 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कितनी शफ़्फ़ाफ़ है ये आवाज़
चश्मे की तरह से जिसने मेरे
अन्दर के तमाम मौसमों को
आईना बना के रख दिया है
पत्थर हो कि फूल ही कि सबज़ा
तारों की बारात हो कि महताब
सूरज का जलाल हो कि तन में
ख़्वाबों की धनक खिंची हुई हो
बारिश हो शफ़क़ खिली हुई हो
हर रुत का गवाह उसका लहजा
तह तक जिसे आँख छू के आए

कितनी शफ़्फ़ाफ़ है ये आवाज़