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"चुप न रहो, कुछ कहो ( व्यथा- गीत ) / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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चुप न रहो , कुछ कहो  
 
चुप न रहो , कुछ कहो  
 
 
तुम्हें कुछ तो कहना है।  
 
तुम्हें कुछ तो कहना है।  
 
 
या लिखा भाग्य का मान सदा यूँ ही सहना है ?  
 
या लिखा भाग्य का मान सदा यूँ ही सहना है ?  
 
 
 
 
कहने से तक़दीर बदलती है,  
 
कहने से तक़दीर बदलती है,  
 
 
देखा है,  
 
देखा है,  
 
 
मुड़ जाती है वह जो  
 
मुड़ जाती है वह जो  
 
 
किस्मत की रेखा है  
 
किस्मत की रेखा है  
 
 
चुप-चुप घुट-घुट कर रहना  
 
चुप-चुप घुट-घुट कर रहना  
 
 
कोई रहना है!  
 
कोई रहना है!  
 
 
चुप न रहो , कुछ कहो, तुम्हें जो कुछ कहना है।  
 
चुप न रहो , कुछ कहो, तुम्हें जो कुछ कहना है।  
 
 
 
 
बार-बार  
 
बार-बार  
 
 
औ' लगातार करना ही होगा  
 
औ' लगातार करना ही होगा  
 
 
अपने जैसों की खातिर  
 
अपने जैसों की खातिर  
 
 
मरना ही होगा  
 
मरना ही होगा  
 
 
मौत सरीखे जीवन में  
 
मौत सरीखे जीवन में  
 
 
कबतक बहना है ?  
 
कबतक बहना है ?  
 
 
चुप न रहो , कुछ कहो,  
 
चुप न रहो , कुछ कहो,  
 
 
भला कुछ तो कहना है !  
 
भला कुछ तो कहना है !  
 
 
 
 
नजर उठाओ, देखो  
 
नजर उठाओ, देखो  
 
 
दर्पण वहीं पड़ा है  
 
दर्पण वहीं पड़ा है  
 
 
जरा निगाहें डालो  
 
जरा निगाहें डालो  
 
 
कोई वहीं खड़ा है  
 
कोई वहीं खड़ा है  
 
 
मर्जी अपनी करो  
 
मर्जी अपनी करो  
 
 
मुझे ऐसे रहना है  
 
मुझे ऐसे रहना है  
 
 
चुप न रहो , कुछ कहो  
 
चुप न रहो , कुछ कहो  
 
 
तुम्हें सब कुछ कहना है।
 
तुम्हें सब कुछ कहना है।
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19:52, 15 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

चुप न रहो , कुछ कहो
तुम्हें कुछ तो कहना है।
या लिखा भाग्य का मान सदा यूँ ही सहना है ?
कहने से तक़दीर बदलती है,
देखा है,
मुड़ जाती है वह जो
किस्मत की रेखा है
चुप-चुप घुट-घुट कर रहना
कोई रहना है!
चुप न रहो , कुछ कहो, तुम्हें जो कुछ कहना है।
बार-बार
औ' लगातार करना ही होगा
अपने जैसों की खातिर
मरना ही होगा
मौत सरीखे जीवन में
कबतक बहना है ?
चुप न रहो , कुछ कहो,
भला कुछ तो कहना है !
नजर उठाओ, देखो
दर्पण वहीं पड़ा है
जरा निगाहें डालो
कोई वहीं खड़ा है
मर्जी अपनी करो
मुझे ऐसे रहना है
चुप न रहो , कुछ कहो
तुम्हें सब कुछ कहना है।