"अफ़्रेशियाई अदीबों के नाम / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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06:47, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अफ़्रेशियाई अदीबों के नाम<ref>अफ़्रीका और एशिया के साहित्यकारों के नाम</ref>
जहाने-लोहो-क़लम<ref>ईश्चर की इच्छा से लिखे हुए भविष्य</ref> के मुसाफ़िराने-जलील<ref>पूज्य महान मुसाफ़िरो</ref>
हम अहले-दश्ते-पेशावर<ref>पिशावरवासी</ref> सलाम कहते हैं
दिलों का क़ुर्ब<ref>सामीप्य</ref>कहीं फ़ासिलों<ref>दूरियों</ref> से मिटता है
ये हर्फ़े-शौक़<ref>लगन के स्वर</ref>बसद-अहतराम<ref>नमस्कार</ref> कहते हैं
हज़ार लफ़्ज़ो-बयानो-ज़बाँ<ref>शब्द अभिव्यक्ति एवं भाषा</ref> का फ़र्क़ सही
मगर हदीसे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी के नियम </ref> हम तमाम कहते हैं
वो माओ हो कि लमुम्बा , सुकार्नो हो कि फ़ैज़
सभी के लोहो-क़लम अज़्मते-बशर<ref> मानव-गरिमा</ref>के नक़ीब<ref>चोबदार</ref>
सब एक दर्द के रिश्ते के मुंसलिक <ref>जुड़े हुए</ref> बिस्मिल<ref>घायल</ref>
सभी हैं दूर नज़र से सभी दिलों के क़रीब<ref>समीप</ref>
जकार्तो-सरनदीप से पेशावर तक
सभी का एक ही नारा सभी की एक सलीब<ref>सूली</ref>
हमें ये सोचना होगा कि ज़िन्दगी अपनी
फ़ज़ा-ए-दहर<ref>सांसरिक वातावरण</ref> में क्यों मौत से भी सस्ती है
हम अहले-शिर्क़<ref>पूर्व वासी</ref> हैं सूरज तराशने वाले
मगर हमारी ज़मीं<ref>धरती</ref> नूर<ref>प्रकाश</ref> को तरसती है
ये क्या कि जो भी घटा दश्त<ref>जंगल</ref> से हमारे उठे
वो दूर-पार समन्दर पे जा बरसती है
ज़मीं से अब नहीं उतरेगा कोई पैग़म्बर<ref>दूत</ref>
जहाने-आदमो-हव्वा<ref>आदम और हव्वा का संसार</ref> सँवारने के लिए
यहाँ मुहम्मदो-गौतम मसीहो-कन्फ़्यूशिस
जला चुके हैं बहुत आगही-फ़रोज़ाँ दिए<ref>भविष में भी प्रकाशित रहने वाले दीपक</ref>
मगर है आज भी अपना नसीब<ref> भाग्य</ref> तारीकी<ref>अन्धेरा</ref>
मगर है आज भी मश्रिक<ref>पूर्व</ref>शबे-दराज़<ref>लंबी रात</ref> लिए
हमीं को तोड़ने होंगे सनम<ref>भगवान</ref> क़दामत <ref>प्राचीनता</ref> के
हमीं को अब नया इन्सान ढालना होगा
हमीं को अपने क़लम की सितारासाज़ी<ref>चमक</ref>से
हर एक ख़ित्ता-ए-तीरा <ref>अँधेरा भाग</ref>उजालना होगा
हमीं को अम्न<ref>शान्ति</ref> के गीतों से , मीठे बोलों से
मुहीब<ref>भयानक</ref>जंग<ref>युद्ध</ref>की आँधी को टालना होगा