"अध्याय १ / भाग १ / श्रीमदभगवदगीता / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
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धर्म सुखेत, कहौ कुरु खेत में, | धर्म सुखेत, कहौ कुरु खेत में, | ||
संजय ! जुद्धन चाह धरै जू. | संजय ! जुद्धन चाह धरै जू. | ||
पाण्डव, मोरे सुतन सब एकहिं, | पाण्डव, मोरे सुतन सब एकहिं, | ||
ठांव खड़े कहौ काह करें जू | ठांव खड़े कहौ काह करें जू | ||
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+ | दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। | ||
+ | आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्॥१-२॥ | ||
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दिव्य नयन माहीं संजय , | दिव्य नयन माहीं संजय , | ||
जस देख रहे, तस् बोल रहे, | जस देख रहे, तस् बोल रहे, | ||
दुरजोधन पाण्डुन व्यूह मयी, | दुरजोधन पाण्डुन व्यूह मयी, | ||
सेना लखि द्रोण सों बोल रहे | सेना लखि द्रोण सों बोल रहे | ||
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+ | पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। | ||
+ | व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥१-३॥ | ||
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हे गुरुवर ! व्यूहमयी ठाड़ी, | हे गुरुवर ! व्यूहमयी ठाड़ी, | ||
पाण्डु के पुत्रन की सेना. | पाण्डु के पुत्रन की सेना. |
09:37, 22 नवम्बर 2009 का अवतरण
प्रथम अध्याय
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१-१॥
धर्म सुखेत, कहौ कुरु खेत में,
संजय ! जुद्धन चाह धरै जू.
पाण्डव, मोरे सुतन सब एकहिं,
ठांव खड़े कहौ काह करें जू
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्॥१-२॥
दिव्य नयन माहीं संजय ,
जस देख रहे, तस् बोल रहे,
दुरजोधन पाण्डुन व्यूह मयी,
सेना लखि द्रोण सों बोल रहे
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥१-३॥
हे गुरुवर ! व्यूहमयी ठाड़ी,
पाण्डु के पुत्रन की सेना.
द्रुपद सुतन ने जाहि रच्यो,
जुद्ध इनहीं सों तो होना
यही सेना माहीं धनुर्धारी,
अर्जुन और भीम सों वीर महे,
जस सात्याकि और विराट महारथ
राजा द्रुपद सों वीर अहे
चेकितान वीर और धृष्टकेतु ,
पुरजित बलि काशी राजहूँ को.
नर मांहीं विशेषहूँ शैव्य अहे ,
कुंती भोज सों वीरहूँ को
बलवीर बलिष्ठ युधामन्यु,
द्रौपद के पाँचहुँ पुत्र महे.
अभिमन्यु पुत्र सुभद्रा को,
उत्तमौजा सों वीरहूँ तत्र रहे
द्विज श्रेय सुनौ हमरे विशेष
और पक्ष में जो--जो विशेष महे.
गुरुवर यही जानिबो जोग तथ्य,
रन खेतहीं जो - जो वीरेश अहे
हैं कर्ण, विकर्ण कृपाचार्य,
एक आप स्वयं एक भीष्म महे.
सुत सोमदत्त कौ भूरिश्रवा,
अश्वतथामा भी दीख रहे
बहु शस्त्रन अस्त्रन मांहीं सजे,
बलवीर बलिष्ठ अनेक यहॉं .
दुरजोधन के हित जीवन कौ ,
जिन मोह तज्यौ सब ठाडे यहॉं
सब भांति अजेय है कुरु सेना,
जब भीष्म पितामह रक्षक हैं.
यही पाण्डव सेना जेय सुगम ,
सुनौ भीम बने संरक्षक हैं
अथ भीष्म पितामह की रक्षा,
संकोच बिनु सब भाँती करें,
सब आपुनि - आपुनि ठॉव रहें,
सहयोग सबहीं बहु भांति करें
कुरु वृद्ध पितामह भीषम ने,
गर्जन करि शंख बजायौ है.
भयो सिंह नाद जस, तांसो हिया.
दुरजोधन को हरषायो है
उपरांत नगाड़े शंख बज्यो,
बहु ढोल मृदंग निनाद भयौ .
सब एकहिं साथ बज्यो सो घन्यो,
कि तांसो भयंकर नाद भयौ
रथ साज रह्यो जो तुरंगन सों,
माधव तस् मांहीं विराज रहे .
अर्जुन हूँ दिव्य अलौकिक शंख को,
वेगि सों वेगि बजाय रहे
शंख पाञ्चजन्य श्री माधव ने,
देवदत्त बजायो धनञ्जय ने .
पौण्ड्र शंख तो भीमा ने ,
अथ दृश्य सुनायौ संजय ने
अनंत विजय के नाम को शंख ,
तो कुंती के पुत्र युधिष्ठिर ने.
सहदेव नकुल मणिपुष्पक शंख,
सुघोष बजयौ महीधर ने
अपराजित सात्यकि, नृप विराट,
शिखंडी महारथी वीर मही .
इन वीरहूँ शंख निनाद कियौ,
बहु शंख बजाय रह्यौ सबहीं
सुत पाँचों द्रुपद नृप, द्रौपदी कौ,
महाबाहु अभिमन्यु उत है,
सुनि राजन ! आपुनि - आपुनि ही,
निज शंख को आपु बजाउत हैं
घन घोष तुमुल नभ धरनी कौ,
निज नाद सों ऐसौ गुंजाय रहे.
धृतराष्ट्र के पुत्रं कौ हिरदय ,
व्याकुल हुई के घबराय रहे
कपि ध्वज अर्जुन ठाड़े हुइ के,
धृतराष्ट्र सुतन को देखत हैं.
भये शस्त्र चलाउन कौ तत्पर,
धनु हाथ उठाय के उद्यत हैं