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"पहले-पहल तो ख़्वाबों का दम भरने लगती हैं / सलीम कौसर" के अवतरणों में अंतर

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14:06, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पहले-पहल तो ख़्वाबों का दम भरने लगती हैं
फिर आँखें पलकों में छुप कर रोने लगती हैं

जाने तब क्यों सूरज की ख़्वाहिश करते हैं लोग
जब बारिश में सब दीवारें गिरने लगती हैं

तस्वीरों का रोग भी आख़िर कैसा होता है
तन्हाई में बात करो तो बोलने लगती हैं

साहिल से टकराने वाली वहशी मौजें भी
ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश में मरने लगती हैं

तुम क्या जानो लफ़्ज़ों के आज़ार की शिद्दत को
यादें तक सोचों की आग में जलने लगती हैं