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Kavita Kosh से
'''वाबस्तगी<ref>बँधाव</ref>'''
आ गई फिर वही पहाड़-सी रात दोश<ref>काँधे</ref> पर हिज्र<ref>विरह</ref> की सलीब<ref>चौपारे के आकाए की सूली</ref> लिए
हर सितारा हलाके-सुबहे-तलब<ref>प्रभात की इच्छा में घायल</ref>
मंज़िले-ख़्वाहिशे-हबीब लिए <ref>प्रिय के गंतव्य की इच्छा</ref>