भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"है भंवरे को जितना कमल का नशा / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= नागफनियों ने सजाईं महफ़िलें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि" | |संग्रह= नागफनियों ने सजाईं महफ़िलें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि" | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
<poem> | <poem> | ||
है भंवरे को जितना कमल का नशा | है भंवरे को जितना कमल का नशा |
13:50, 27 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
है भंवरे को जितना कमल का नशा
किसी को है उतना ग़ज़ल का नशा
पियें देवता शौक से सोमरस
महादेव को है गरल का नशा
हैं ख़ुश अपने कच्चे घरौंदों में हम
उन्हें होगा अपने महल का नशा
पिलाकर गया है कुछ ऐसी अतीत
उतरता नहीं बीते कल का नशा
कोई गीतिका छंद में है मगन
किसी को है बहरे-रमल का नशा
बड़ी शान से अब तो पीते हैं सब
कि फ़ैशन हुआ आजकल का नशा
पियो तुम तो महरिष सुधा शांति की
बुरा युद्ध का एक पल का नशा