"तुम भी बोलो, क्या दूँ रानी / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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| − | पगली इन क्षीण बाहुओं में | + | {{KKCatKavita}} |
| − | कैसे यों कस कर रख लोगी | + | <poem> |
| − | एक, एक एक क्षण को केवल थे मिले प्रणय के चपल श्वास | + | पगली इन क्षीण बाहुओं में |
| − | भोली हो, समझ लिया तुमने सब दिन को अब गुंथ गये पाश | + | कैसे यों कस कर रख लोगी |
| + | एक, एक एक क्षण को केवल थे मिले प्रणय के चपल श्वास | ||
| + | भोली हो, समझ लिया तुमने सब दिन को अब गुंथ गये पाश | ||
| − | स्वच्छंद सदा मै मारुत-सा | + | स्वच्छंद सदा मै मारुत-सा |
| − | वश में तुम कैसे कर लोगी | + | वश में तुम कैसे कर लोगी |
| − | लतिकाओं के नित तोड पाश उठते ईस उपवन के रसाल | + | लतिकाओं के नित तोड पाश उठते ईस उपवन के रसाल |
| − | ठुकरा चरणाश्रित लहरों को उड जाते मानस के मराल | + | ठुकरा चरणाश्रित लहरों को उड जाते मानस के मराल |
| − | फिर कहो, तुम्हारी मिलन रात | + | फिर कहो, तुम्हारी मिलन रात |
| − | ही कैसे सब दिन की होगी | + | ही कैसे सब दिन की होगी |
| − | मै तो चिर-पथिक प्रवासी हू, था ईतना ही निवास मेरा | + | मै तो चिर-पथिक प्रवासी हू, था ईतना ही निवास मेरा |
| − | रोकर मत रोको राह, विवश यह पारद-पद जीवन मेरा | + | रोकर मत रोको राह, विवश यह पारद-पद जीवन मेरा |
| − | राका तो एक चरण रानी | + | राका तो एक चरण रानी |
| − | पूनों थी, मावश भी होगी | + | पूनों थी, मावश भी होगी |
| − | जीवन भर कभी न भूलूँगा उपहार तुम्हारे वे मधुमय | + | जीवन भर कभी न भूलूँगा उपहार तुम्हारे वे मधुमय |
| − | वह प्रथम मिलन का प्रिय चुम्बन यह अश्रु-हार अब विदा समय | + | वह प्रथम मिलन का प्रिय चुम्बन यह अश्रु-हार अब विदा समय |
| − | तुम भी बोलो, क्या दुँ रानी | + | तुम भी बोलो, क्या दुँ रानी |
| − | सुधि लोगी, या सपने लोगी< | + | सुधि लोगी, या सपने लोगी |
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12:10, 8 दिसम्बर 2009 का अवतरण
पगली इन क्षीण बाहुओं में
कैसे यों कस कर रख लोगी
एक, एक एक क्षण को केवल थे मिले प्रणय के चपल श्वास
भोली हो, समझ लिया तुमने सब दिन को अब गुंथ गये पाश
स्वच्छंद सदा मै मारुत-सा
वश में तुम कैसे कर लोगी
लतिकाओं के नित तोड पाश उठते ईस उपवन के रसाल
ठुकरा चरणाश्रित लहरों को उड जाते मानस के मराल
फिर कहो, तुम्हारी मिलन रात
ही कैसे सब दिन की होगी
मै तो चिर-पथिक प्रवासी हू, था ईतना ही निवास मेरा
रोकर मत रोको राह, विवश यह पारद-पद जीवन मेरा
राका तो एक चरण रानी
पूनों थी, मावश भी होगी
जीवन भर कभी न भूलूँगा उपहार तुम्हारे वे मधुमय
वह प्रथम मिलन का प्रिय चुम्बन यह अश्रु-हार अब विदा समय
तुम भी बोलो, क्या दुँ रानी
सुधि लोगी, या सपने लोगी
