"हर लिया क्यों शैशव नादान / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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(यह पंडित नरेन्द्र शर्मा की एक कविता है जो १९३२ में हिन्दी की प्रख्यात पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह १९६० में प्रकाशित सरस्वती के हीरक जयन्ती विशेषांक में भी सम्मिलित है; जहाँ से मुझे मिली है। बहुत सुन्दर लगी मुझे इस लिये आपके साथ बाँट रहा हूँ, उनकी सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह की अनुमति से।...लक्ष्मीनारायण गुप्त) | (यह पंडित नरेन्द्र शर्मा की एक कविता है जो १९३२ में हिन्दी की प्रख्यात पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह १९६० में प्रकाशित सरस्वती के हीरक जयन्ती विशेषांक में भी सम्मिलित है; जहाँ से मुझे मिली है। बहुत सुन्दर लगी मुझे इस लिये आपके साथ बाँट रहा हूँ, उनकी सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह की अनुमति से।...लक्ष्मीनारायण गुप्त) | ||
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हर लिया क्यों शैशव नादान? | हर लिया क्यों शैशव नादान? | ||
शुद्ध सलिल सा मेरा जीवन, | शुद्ध सलिल सा मेरा जीवन, | ||
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दुग्ध फेन-सा था अमूल्य मन, | दुग्ध फेन-सा था अमूल्य मन, | ||
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तृष्णा का संसार नहीं था, | तृष्णा का संसार नहीं था, | ||
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उर रहस्य का भार नहीं था, | उर रहस्य का भार नहीं था, | ||
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स्नेह-सखा था, नन्दन कानन | स्नेह-सखा था, नन्दन कानन | ||
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था क्रीडास्थल मेरा पावन; | था क्रीडास्थल मेरा पावन; | ||
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भोलापन भूषण आनन का | भोलापन भूषण आनन का | ||
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इन्दु वही जीवन-प्रांगण का | इन्दु वही जीवन-प्रांगण का | ||
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हाय! कहाँ वह लीन हो गया | हाय! कहाँ वह लीन हो गया | ||
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विधु मेरा छविमान? | विधु मेरा छविमान? | ||
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हर लिया क्यों शैशव नादान? | हर लिया क्यों शैशव नादान? | ||
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निर्झर-सा स्वछन्द विहग-सा, | निर्झर-सा स्वछन्द विहग-सा, | ||
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शुभ्र शरद के स्वच्छ दिवस-सा, | शुभ्र शरद के स्वच्छ दिवस-सा, | ||
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अधरों पर स्वप्निल-सस्मिति-सा, | अधरों पर स्वप्निल-सस्मिति-सा, | ||
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हिम पर क्रीड़ित स्वर्ण-रश्मि-सा, | हिम पर क्रीड़ित स्वर्ण-रश्मि-सा, | ||
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मेरा शैशव! मधुर बालपन! | मेरा शैशव! मधुर बालपन! | ||
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बादल-सा मृदु-मन कोमल-तन। | बादल-सा मृदु-मन कोमल-तन। | ||
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हा अप्राप्य-धन! स्वर्ग-स्वर्ण-कन | हा अप्राप्य-धन! स्वर्ग-स्वर्ण-कन | ||
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कौन ले गया नल-पट खग बन? | कौन ले गया नल-पट खग बन? | ||
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कहाँ अलक्षित लोक बसाया? | कहाँ अलक्षित लोक बसाया? | ||
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किस नभ में अनजान! | किस नभ में अनजान! | ||
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हर लिया क्यों शैशव नादान? | हर लिया क्यों शैशव नादान? | ||
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जग में जब अस्तित्व नहीं था, | जग में जब अस्तित्व नहीं था, | ||
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जीवन जब था मलयानिल-सा | जीवन जब था मलयानिल-सा | ||
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अति लघु पुष्प, वायु पर पर-सा, | अति लघु पुष्प, वायु पर पर-सा, | ||
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स्वार्थ-रहित के अरमानों-सा, | स्वार्थ-रहित के अरमानों-सा, | ||
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चिन्ता-द्वेष-रहित-वन-पशु-सा | चिन्ता-द्वेष-रहित-वन-पशु-सा | ||
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ज्ञान-शून्य क्रीड़ामय मन था, | ज्ञान-शून्य क्रीड़ामय मन था, | ||
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स्वर्गिक, स्वप्निल जीवन-क्रीड़ा | स्वर्गिक, स्वप्निल जीवन-क्रीड़ा | ||
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छीन ले गया दे उर-पीड़ा | छीन ले गया दे उर-पीड़ा | ||
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कपटी कनक-काम-मृग बन कर | कपटी कनक-काम-मृग बन कर | ||
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किस मग हा! अनजान? | किस मग हा! अनजान? | ||
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हर लिया क्यों शैशव नादान? | हर लिया क्यों शैशव नादान? | ||
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'''नरेन्द्र शर्मा (१९३२)''' | '''नरेन्द्र शर्मा (१९३२)''' | ||
(सरस्वती हीरक-जयन्ती विशेषांक १९००-१९५९ से साभार) | (सरस्वती हीरक-जयन्ती विशेषांक १९००-१९५९ से साभार) | ||
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12:48, 8 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
(यह पंडित नरेन्द्र शर्मा की एक कविता है जो १९३२ में हिन्दी की प्रख्यात पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह १९६० में प्रकाशित सरस्वती के हीरक जयन्ती विशेषांक में भी सम्मिलित है; जहाँ से मुझे मिली है। बहुत सुन्दर लगी मुझे इस लिये आपके साथ बाँट रहा हूँ, उनकी सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह की अनुमति से।...लक्ष्मीनारायण गुप्त)
हर लिया क्यों शैशव नादान?
शुद्ध सलिल सा मेरा जीवन,
दुग्ध फेन-सा था अमूल्य मन,
तृष्णा का संसार नहीं था,
उर रहस्य का भार नहीं था,
स्नेह-सखा था, नन्दन कानन
था क्रीडास्थल मेरा पावन;
भोलापन भूषण आनन का
इन्दु वही जीवन-प्रांगण का
हाय! कहाँ वह लीन हो गया
विधु मेरा छविमान?
हर लिया क्यों शैशव नादान?
निर्झर-सा स्वछन्द विहग-सा,
शुभ्र शरद के स्वच्छ दिवस-सा,
अधरों पर स्वप्निल-सस्मिति-सा,
हिम पर क्रीड़ित स्वर्ण-रश्मि-सा,
मेरा शैशव! मधुर बालपन!
बादल-सा मृदु-मन कोमल-तन।
हा अप्राप्य-धन! स्वर्ग-स्वर्ण-कन
कौन ले गया नल-पट खग बन?
कहाँ अलक्षित लोक बसाया?
किस नभ में अनजान!
हर लिया क्यों शैशव नादान?
जग में जब अस्तित्व नहीं था,
जीवन जब था मलयानिल-सा
अति लघु पुष्प, वायु पर पर-सा,
स्वार्थ-रहित के अरमानों-सा,
चिन्ता-द्वेष-रहित-वन-पशु-सा
ज्ञान-शून्य क्रीड़ामय मन था,
स्वर्गिक, स्वप्निल जीवन-क्रीड़ा
छीन ले गया दे उर-पीड़ा
कपटी कनक-काम-मृग बन कर
किस मग हा! अनजान?
हर लिया क्यों शैशव नादान?
नरेन्द्र शर्मा (१९३२)
(सरस्वती हीरक-जयन्ती विशेषांक १९००-१९५९ से साभार)