भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
छो |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक<br><br> | कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक<br><br> | ||
− | दाम हर मौज में है हल्क़ा-ए- | + | दाम हर मौज में है हल्क़ा-ए-सदकामे-निहंग <br> |
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक <br><br> | देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक <br><br> | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक <br><br> | ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक <br><br> | ||
− | पर्तव-ए- | + | पर्तव-ए-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम <br> |
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक <br><br> | मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक <br><br> | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक <br><br> | गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक <br><br> | ||
− | + | ग़्मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज <br> | |
− | + | शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक <br><br> |
06:12, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: गा़लिब
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
दाम हर मौज में है हल्क़ा-ए-सदकामे-निहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गौहर होने तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होने तक
पर्तव-ए-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
यकनज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक
ग़्मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक