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युग-पुरुष / माखनलाल चतुर्वेदी

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तुझ पर पागल बने आज उन्मत्त जमाना,
तेरे हाथों बुने सफलता ताना-बाना।
:तू युग की हुंकार,
:अमर जीवन की वाणी,
:तेरी साँसें अमर हो उठें,
:युग-कल्याणी।
तेरा पहरेदार, विन्ध्य का दक्षिण उत्तर,
तेरी ही गर्जना, नर्मदा का कोमल स्वर।
तेरी जीवित साँस आज तुलसी की भाषा,
तेरा पौरुष सतत अमर जीवन की आशा।
:जाग-जाग उठ तपी तुझे
:जग का आमंत्रण
:विभु दे तुझको उठा
:सौंप कर अमृत के कण।
तेरी कृति पर सजे हिमालय रजत-मुकुट-सा,
सिन्धु, इरावति बने सुहावन वैभव घट-सा,
गंगा-जमुना बहें तुम्हारी उर-माला-सी,
विहरित हरित स्वदेश करें, कृषि-जन-कमला-सी।
:कमर-बन्द नर्मदा बने
:उठ सेना-नायक।
:शस्त्र-सज्जिता तरल तापती
:बने सहायक।
तेरी असि-सी लटक चलें कृष्णा कावेरी,
'''रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुर-१९४४
</poem>
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