भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक दुनिया समानांतर / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
एक दुनिया है सपनो की | एक दुनिया है सपनो की | ||
बेरौनक और बदरंग। | बेरौनक और बदरंग। | ||
+ | |||
+ | '''रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली | ||
</poem> | </poem> |
20:22, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण
विज्ञापनों के बाहर भी
एक दुनिया है बच्चों की
उदास औए मायूस।
विज्ञापनों के बाहर भी
एक दुनिया है टाँगों और बाँहों की
काँपती और थरथराती हुई।
विज्ञापनों के बाहर भी
एक दुनिया है आवाज़ों की
लरजती और घुटती हुई।
विज्ञापनों के बाहर भी
एक दुनिया है सपनो की
बेरौनक और बदरंग।
रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली