"बापू के प्रति / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन…) |
|||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
तुमने पावन कर, मुक्त किये | तुमने पावन कर, मुक्त किये | ||
मृत संस्कृतियों के विकृत भूत! | मृत संस्कृतियों के विकृत भूत! | ||
− | + | ::सुख-भोग खोजने आते सब, | |
+ | ::आये तुम करने सत्य खोज, | ||
+ | ::जग की मिट्टी के पुतले जन, | ||
+ | ::तुम आत्मा के, मन के मनोज! | ||
+ | ::जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर | ||
+ | ::चेतना, अहिंसा, नम्र-ओज, | ||
+ | ::पशुता का पंकज बना दिया | ||
+ | ::तुमने मानवता का सरोज! | ||
+ | पशु-बल की कारा से जग को | ||
+ | दिखलाई आत्मा की विमुक्ति, | ||
+ | विद्वेष, घृणा से लड़ने को | ||
+ | सिखलाई दुर्जय प्रेम-युक्ति; | ||
+ | वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ | ||
+ | तुमने विचार-परिणीत उक्ति, | ||
+ | विश्वानुरक्त हे अनासक्त! | ||
+ | सर्वस्व-त्याग को बना भुक्ति! | ||
'''रचनाकाल: मई’१९३५''' | '''रचनाकाल: मई’१९३५''' | ||
</poem> | </poem> |
13:30, 21 दिसम्बर 2009 का अवतरण
तुम मांस-हीन, तुम रक्त-हीन,
हे अस्थि-शेष! तुम अस्थि-हीन,
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन;
आधार अमर, होगी जिसपर
भावी की संस्कृति समासीन!
तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि,--
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा नि:स्व-त्याग
है विश्व-भोग का वर साधन।
इस भस्म-काम तन की रज से
जग पूर्ण-काम नव जग-जीवन
बीनेगा सत्य-अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन!
सदियों का दैन्य-तमिस्र तूम,
धुन तुमने कात प्रकाश-सूत,
हे नग्न! नग्न-पशुता ढँकदी
बुन नव संस्कृत मनुजत्व पूत।
जग पीड़ित छूतों से प्रभूत,
छू अमित स्पर्श से, हे अछूत!
तुमने पावन कर, मुक्त किये
मृत संस्कृतियों के विकृत भूत!
सुख-भोग खोजने आते सब,
आये तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज!
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र-ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज!
पशु-बल की कारा से जग को
दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष, घृणा से लड़ने को
सिखलाई दुर्जय प्रेम-युक्ति;
वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ
तुमने विचार-परिणीत उक्ति,
विश्वानुरक्त हे अनासक्त!
सर्वस्व-त्याग को बना भुक्ति!
रचनाकाल: मई’१९३५