"हकीकत / अब तुम्हारे हवाले है वतन साथियों" के अवतरणों में अंतर
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कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों ... | कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों ... |
00:26, 23 दिसम्बर 2009 का अवतरण
रचनाकार: कैफी आजमी |
कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों ...
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों ...
कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों - (2)
सांस थम थी गई, नब्ज जम् तो गई,
फिर भी बडते कदम् को ना रुक णे दिया,
कट् गये सर हमारे, तो कुछ गम् नहीं,
सर् हिमालय क हमने न झुक ने दिया,
मरते मरते राहा बांकपन् साथीयों,
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों ...
कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों - (2)
जिन्दा रेहेने के मौसम, बहुत है मगर,
जान् देने की रुत् रोज् आती नहीं,
हुस्न् और इश्क् दोनो को रुसवा करें,
वो जवानी जो खून् मे नाहाती नहीं,
आज धरती बनी है दुल्हन साथीयों ...
कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों - (2)
राह् कुर्बानियों कि ना वीरान हो,
तुम सजाते ही रेहन नये काफिले,
फतेह् का जशन इस् जशन के बाद् है,
जिन्दगी मौत से मिल रही है गले,
बदलो अपने सर से कफन् साथीयों ...
कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों - (2)
खेंच् दो अपने खून् से जमीं पर लकीर,
इस तरह् आने ना पाये ना रावन कोई,
तोड दो हाथ अगर् हाथ उठ्ने लगे,
छुने पाये ना सिता का दामन् कोई,
रम भी तुम, तुम्हि लक्ष्मन साथीयों ...
कर चले हम फिदा, जान्-ओ-तन् साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले, वतन साथीयों