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"ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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गुलाब | गुलाब |
11:09, 23 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
गुलाब
तू बदरंग हो गया है
बदरूप हो गया है
झुक गया है
तेरा मुंह चुचुक गया है
तू चुक गया है ।
ऐसा तुझे देख कर
मेरा मन डरता है
फूल इतना डरावाना हो कर मरता है!
खुशनुमा गुलदस्ते में
सजे हुए कमरे में
तू जब
ऋतु-राज राजदूत बन आया था
कितना मन भाया था-
रंग-रूप, रस-गंध टटका
क्षण भर को
पंखुरी की परतो में
जैसे हो अमरत्व अटका!
कृत्रिमता देती है कितना बडा झटका!
तू आसमान के नीचे सोता
तो ओस से मुंह धोता
हवा के झोंके से झरता
पंखुरी पंखुरी बिखरता
धरती पर संवरता
प्रकृति में भी है सुंदरता