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+ | एक दिन | ||
पृथ्वी पर जन्मे | पृथ्वी पर जन्मे | ||
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असंख्य लोगों की तरह | असंख्य लोगों की तरह | ||
− | + | मिट जाऊंगा मैं, | |
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मिट जाएंगी मेरी स्मृतियाँ | मिट जाएंगी मेरी स्मृतियाँ | ||
− | + | मेरे नाम के शब्द भी हो जाएंगे | |
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एक दूसरे से अलग | एक दूसरे से अलग | ||
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कोश में अपनी-अपनी जगह पहुँचने की | कोश में अपनी-अपनी जगह पहुँचने की | ||
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जल्दबाजी में | जल्दबाजी में | ||
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अपने अर्थ समेट लेंगे वे | अपने अर्थ समेट लेंगे वे | ||
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शलभ कहीं होगा | शलभ कहीं होगा | ||
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कहीं होगा श्रीराम | कहीं होगा श्रीराम | ||
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और सिंह कहीं और | और सिंह कहीं और | ||
− | + | लघुता-मर्यादा और हिंस्र पशुता का | |
− | लघुता-मर्यादा और | + | |
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समन्वय समाप्त हो जाएगा एक दिन | समन्वय समाप्त हो जाएगा एक दिन | ||
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एक दिन | एक दिन | ||
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असंख्य लोगों की तरह | असंख्य लोगों की तरह | ||
+ | मिट जाऊँगा मैं भी। | ||
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− | + | ||
− | फिर भी | + | |
− | + | ||
राख में दबे अंगारे की तरह | राख में दबे अंगारे की तरह | ||
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कहीं न कहीं अदृश्य, अनाम,अपरिचित | कहीं न कहीं अदृश्य, अनाम,अपरिचित | ||
− | + | रहूंगा फिर भी-फिर भी मैं | |
− | + | </poem> |
01:27, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
एक दिन
पृथ्वी पर जन्मे
असंख्य लोगों की तरह
मिट जाऊंगा मैं,
मिट जाएंगी मेरी स्मृतियाँ
मेरे नाम के शब्द भी हो जाएंगे
एक दूसरे से अलग
कोश में अपनी-अपनी जगह पहुँचने की
जल्दबाजी में
अपने अर्थ समेट लेंगे वे
शलभ कहीं होगा
कहीं होगा श्रीराम
और सिंह कहीं और
लघुता-मर्यादा और हिंस्र पशुता का
समन्वय समाप्त हो जाएगा एक दिन
एक दिन
असंख्य लोगों की तरह
मिट जाऊँगा मैं भी।
फिर भी रहूंगा मैं
राख में दबे अंगारे की तरह
कहीं न कहीं अदृश्य, अनाम,अपरिचित
रहूंगा फिर भी-फिर भी मैं