भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब सामने लाएँ आईना क्या / कृश्न कुमार 'तूर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृश्न कुमार 'तूर' }} {{KKCatGhazal}} <poem> अब सामने लाएँ आईना क…) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=कृश्न कुमार 'तूर' | |रचनाकार=कृश्न कुमार 'तूर' | ||
+ | |संग्रह=सरनामा-ए-गुमाँ नज़री / कृश्न कुमार 'तूर' | ||
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
अब सामने लाएँ आईना क्या | अब सामने लाएँ आईना क्या |
11:29, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण
अब सामने लाएँ आईना क्या
हम ख़ुद को दिखाएँ आईना क्या
ये दिल है इसे तो टूटना था
दुनिया से बचाएँ आईना क्या
हम अपने आप पर फ़िदा हैं
आँखों से हटाएँ आईना क्या
इस में जो अक्स है ख़बर है
अब देखें दिखाएँ आईना क्या
क्या दहर को इज़ने-आगही दें
पत्थर को दिखाएँ आईना क्या
उस रश्क़े-क़मर से वस्ल रखें
पहलू में सुलाएँ आईना क्या
हम भी तो मिसाले-आईना हैं
अब ‘तूर’ हटाएँ आईना क्या