"उपरान्त जीवन / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर
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− | मृत्यु इस पृथ्वी पर | + | {{KKCatKavita}} |
− | जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है | + | <poem> |
+ | मृत्यु इस पृथ्वी पर | ||
+ | जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है | ||
− | किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती | + | किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती |
− | स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का | + | स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का |
− | लेखागार हैं हमारे जीवाश्म। | + | लेखागार हैं हमारे जीवाश्म। |
− | परलोक इसी दुनिया का मामला है। | + | परलोक इसी दुनिया का मामला है। |
− | जो सब पीछे छूट जाता | + | जो सब पीछे छूट जाता |
− | उसी सबका | + | उसी सबका |
− | उसी माला से किंवदन्ती-पाठ। | + | उसी माला से किंवदन्ती-पाठ। |
− | एक अथक कथावाचक है समय | + | एक अथक कथावाचक है समय |
− | ढीठ उपदेशक है कालचक्र | + | ढीठ उपदेशक है कालचक्र |
− | दुहराता पिछले पाठ | + | दुहराता पिछले पाठ |
− | लिखता कुछ नए पृष्ठ | + | लिखता कुछ नए पृष्ठ |
− | जीवन का महाग्रंथ | + | जीवन का महाग्रंथ |
− | एक संकलन के प्रारूप में नत्थी | + | एक संकलन के प्रारूप में नत्थी |
− | पिता-पुत्र दृष्टान्त की | + | पिता-पुत्र दृष्टान्त की |
− | असंख्य चित्रावलियां। | + | असंख्य चित्रावलियां। |
− | एक सच्चा पश्चाताप--एक प्रायश्चित | + | एक सच्चा पश्चाताप--एक प्रायश्चित |
− | एक हार्दिक क्षमायाचना से भी | + | एक हार्दिक क्षमायाचना से भी |
− | परिशुद्ध की जा सकती है | + | परिशुद्ध की जा सकती है |
− | भूलचूक की पिछली जमीन, | + | भूलचूक की पिछली जमीन, |
− | एक वापसी के सौभाग्य से भी | + | एक वापसी के सौभाग्य से भी |
− | मनाया जा सकता है | + | मनाया जा सकता है |
− | एक नए संवत्सर का शु्भ पर्व, | + | एक नए संवत्सर का शु्भ पर्व, |
− | एक सुलह की शपथ | + | एक सुलह की शपथ |
− | हो सकती है पर्याप्त संजीवनी | + | हो सकती है पर्याप्त संजीवनी |
− | कि आंखें मलते हुए उठ बैठे | + | कि आंखें मलते हुए उठ बैठे |
− | एक नया जीवन-संकल्प | + | एक नया जीवन-संकल्प |
− | और लिपट जाए गले से | + | और लिपट जाए गले से |
− | एक दुर्लभ अपनत्व की पुन:प्राप्ति | + | एक दुर्लभ अपनत्व की पुन:प्राप्ति |
− | यहां से भी शुरू हो सकता है | + | यहां से भी शुरू हो सकता है |
− | एक उपरान्त जीवन-- | + | एक उपरान्त जीवन-- |
− | पूर्णाहुति के बिल्कुल समीप | + | पूर्णाहुति के बिल्कुल समीप |
− | बची रह गयी | + | बची रह गयी |
− | किंचित् श्लोक बराबर जगह में भी | + | किंचित् श्लोक बराबर जगह में भी |
− | पढ़ा जा सकता है | + | पढ़ा जा सकता है |
− | एक जीवन-संदेश | + | एक जीवन-संदेश |
− | कि समय हमें कुछ भी | + | कि समय हमें कुछ भी |
− | अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता, | + | अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता, |
− | पर अपने बाद | + | पर अपने बाद |
− | अमूल्य कुछ छोड़ जाने का | + | अमूल्य कुछ छोड़ जाने का |
पूरा अवसर देता है। | पूरा अवसर देता है। | ||
+ | </poem> |
15:52, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
मृत्यु इस पृथ्वी पर
जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है
किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती
स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का
लेखागार हैं हमारे जीवाश्म।
परलोक इसी दुनिया का मामला है।
जो सब पीछे छूट जाता
उसी सबका
उसी माला से किंवदन्ती-पाठ।
एक अथक कथावाचक है समय
ढीठ उपदेशक है कालचक्र
दुहराता पिछले पाठ
लिखता कुछ नए पृष्ठ
जीवन का महाग्रंथ
एक संकलन के प्रारूप में नत्थी
पिता-पुत्र दृष्टान्त की
असंख्य चित्रावलियां।
एक सच्चा पश्चाताप--एक प्रायश्चित
एक हार्दिक क्षमायाचना से भी
परिशुद्ध की जा सकती है
भूलचूक की पिछली जमीन,
एक वापसी के सौभाग्य से भी
मनाया जा सकता है
एक नए संवत्सर का शु्भ पर्व,
एक सुलह की शपथ
हो सकती है पर्याप्त संजीवनी
कि आंखें मलते हुए उठ बैठे
एक नया जीवन-संकल्प
और लिपट जाए गले से
एक दुर्लभ अपनत्व की पुन:प्राप्ति
यहां से भी शुरू हो सकता है
एक उपरान्त जीवन--
पूर्णाहुति के बिल्कुल समीप
बची रह गयी
किंचित् श्लोक बराबर जगह में भी
पढ़ा जा सकता है
एक जीवन-संदेश
कि समय हमें कुछ भी
अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता,
पर अपने बाद
अमूल्य कुछ छोड़ जाने का
पूरा अवसर देता है।