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"रिश्ते भी मुरझाते हैं / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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− | अपनी तनिक खुशी के लिए वो दूसरों के घर जलाता है॥< | + |
22:06, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
पल-पल रिश्ते भी मुरझाते हैं
उम्र बढते-बढते वे घटते जाते हैं।
मानव कुछ और की चाह बढाते हैं,
इसलिए वे कहीं और भटक जातेहैं॥
रिश्ते का जो पक्ष कमजोर है,
समय उसको ही देता झकझोर है।
अतीत की गवाही नहीं चलती वहां,
मानव सुख की पूंजी का जमाखोर है॥
मानव एक रिश्ते को तोड,दूसरे को अपनाता है,
अब तक के सारे कसमें-वादे भूल जाता है।
मानव से अधिक स्वार्थी न कोई होगा जहां में,
अपनी तनिक खुशी के लिए वो दूसरों के घर जलाता है॥