भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुर्ते की जेबें खाली हैं, औ' फटा हुआ है पाजामा / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> कु...)
 
छो ()
(कोई अंतर नहीं)

19:38, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण

 
कुर्ते की जेबें खाली हैं , औ’ फटा हुआ है पाजामा
इनको न भिखारी समझो तुम ,ये करने निकले हंगामा

धक्के-मुक्के, गाली-गुस्सा ,खा-पीकर इतने बड़े हुए
फुसला न सकोगे इनको तुम, दिखला करके चंदामामा

दिल्ली वाले बाजीगर जी! अब जाग उठा है शेषनाग
भागो, छोड़ो यह बीन-शीन, यह टोपी-बालों का ड्रामा