भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माथे पे बिंदिया चमक रही / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
माथे पे बिंदिया चमक रही
 
माथे पे बिंदिया चमक रही
 
 
हाथों में मेंहदी महक रही।
 
हाथों में मेंहदी महक रही।
 
  
 
शर्माते से इन गालों पर
 
शर्माते से इन गालों पर
 
 
सूरज सी लाली दमक रही।
 
सूरज सी लाली दमक रही।
 
  
 
खन-खन से करते कॅगन की
 
खन-खन से करते कॅगन की
 
 
आवाज़ मधुर सी चहक रही।
 
आवाज़ मधुर सी चहक रही।
 
  
 
है नये सफर की तैयारी
 
है नये सफर की तैयारी
 
 
पैरों में पायल छनक रही।
 
पैरों में पायल छनक रही।
 +
</poem>

14:34, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण

माथे पे बिंदिया चमक रही
हाथों में मेंहदी महक रही।

शर्माते से इन गालों पर
सूरज सी लाली दमक रही।

खन-खन से करते कॅगन की
आवाज़ मधुर सी चहक रही।

है नये सफर की तैयारी
पैरों में पायल छनक रही।