भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिधर खुला व्योम होता है (कविता) / केशव शरण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव शरण |संग्रह=जिधर खुला व्योम होता है / केशव श...) |
छो (जिधर खुला व्योम होता है. / केशव शरण का नाम बदलकर जिधर खुला व्योम होता है (कविता) / केशव शरण कर दिया गया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:29, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण
तंग करती है-
तंगनिगाही,
तंग करती है
तंगमिज़ाजी,
तंग करती है
तंगदिली
उनकी
इसलिए
विक्षोभ होता है
और मैं भागता हूँ उस अलंग
जिधर खुला व्योम होता है
उधर ही
हवा, हरियाली और मौसम से सँयुक्त मैं
महसूस करता हूँ मन को अपने राग-द्वेष से मुक्त मैं
और उन्मुक्त उड़ता हूँ-
एक परिन्दे की तरह
फूल के गुच्छे और
किसी दुपट्टे की तरह