भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मुनव्वर राना |संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर र...) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= मुनव्वर राना | |रचनाकार= मुनव्वर राना | ||
− | |संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर राना | + | |संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर राना;बदन सराय / मुनव्वर राना |
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] |
16:09, 31 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती
मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जाती
जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा है
जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जाती
मोहब्बत का ये जज़बा जब ख़ुदा क्जी देन है भाई
तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जाती
वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगर ‘राना’
न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती.