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"वास्तविकता / जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री<br>
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ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी !
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ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी!
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13:44, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

ज़िन्दगी ललक थी; किन्तु भारी जुआ बन गयी,
ज़िन्दगी फ़लक थी; किन्तु अंधा कुआँ बन गयी,
कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री
ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी!