भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वास्तविकता / जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो () |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर | |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर | ||
|संग्रह=जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर | |संग्रह=जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर | ||
− | }}ज़िन्दगी ललक थी; किन्तु भारी जुआ बन गयी, | + | }} |
− | ज़िन्दगी फ़लक थी; किन्तु अंधा कुआँ बन गयी, | + | {{KKCatKavita}} |
− | कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री | + | <poem> |
− | ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी ! | + | ज़िन्दगी ललक थी; किन्तु भारी जुआ बन गयी, |
+ | ज़िन्दगी फ़लक थी; किन्तु अंधा कुआँ बन गयी, | ||
+ | कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री | ||
+ | ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी! | ||
+ | </poem> |
13:44, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
ज़िन्दगी ललक थी; किन्तु भारी जुआ बन गयी,
ज़िन्दगी फ़लक थी; किन्तु अंधा कुआँ बन गयी,
कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री
ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी!