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21:28, 4 जनवरी 2010 का अवतरण
अपनी पलकें वो बंद रखता है
जाने कैसी पसंद रखता है
ख़ुद को कहता है आसमाँ पैमा
कितनी ओछी कमंद रखता है
मारा जाएगा देखना इक दिन
क्यूँ दिल ए दर्दमंद रखता है
साथ वाले ख़फा ख़ता ये है
क्यूँ इरादे बुलंद रखता है
धूप से सामना न हो जाए
घर से दरवाज़े बंद रखता है