"दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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वो बादा-ए-शबाना की सरमस्तियाँ कहाँ <br> | वो बादा-ए-शबाना की सरमस्तियाँ कहाँ <br> | ||
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उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कू-ए-यार में <br> | उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कू-ए-यार में <br> | ||
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मस्ती से हर निगह तेरे रुख़ पर बिखर गई<br><br> | मस्ती से हर निगह तेरे रुख़ पर बिखर गई<br><br> | ||
− | फ़र्दा-ओ-दीं का | + | फ़र्दा-ओ-दीं का तफ़रक़ा यक बार मिट गया <br> |
− | कल तुम गए | + | कल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई<br><br> |
मारा ज़माने ने 'असदुल्लह ख़ाँ" तुम्हें <br> | मारा ज़माने ने 'असदुल्लह ख़ाँ" तुम्हें <br> | ||
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई <br><br> | वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई <br><br> |
06:47, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: ग़ालिब
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दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामन्द कर गई
चाक़ हो गया है सीना ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़
तक्लीफ़-ए-पर्दादारी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर गई
वो बादा-ए-शबाना की सरमस्तियाँ कहाँ
उठिये बस अब कि लज़्ज़त-ए-ख़्वाब-ए-सहर गई
उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कू-ए-यार में
बारे अब ऐ हवा, हवस-ए-बाल-ओ-पर गई
देखो तो दिल फ़रेबि-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई
हर बुलहवस ने हुस्न परस्ती शिआर की
अब आबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गई
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
मस्ती से हर निगह तेरे रुख़ पर बिखर गई
फ़र्दा-ओ-दीं का तफ़रक़ा यक बार मिट गया
कल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई
मारा ज़माने ने 'असदुल्लह ख़ाँ" तुम्हें
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई