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"गीत के जितने कफ़न हैं / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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19:26, 8 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

जिंदगी की लाश
ढकने के लिए
गीत के जितने कफ़न हैं
हैं बहुत छोटे ।
रात की
प्रतिमा
सुधाकर ने छुई
पीर यह
फिर से
सितारों सी हुई
आँख का आकाश
ढकने के लिए
प्रीत के जितने सपन हैं
हैं बहुत छोटे।
खोज में हो
जो
लरजती छाँव की
दर्द
पगडंडी नहीं
उस गाँव की
पीर का उपहास
ढकने के लिए
अश्रु के जितने रतन हैं
हैं बहुत छोटे।