भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाग़ में बस गया है डर लिखना / शीन काफ़ निज़ाम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम |संग्रह=सायों के साए में / शीन का…) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
इस में क्या कि सोच कर लिखना | इस में क्या कि सोच कर लिखना | ||
− | किस को | + | किस को फ़ुर्सत है कौन पढ़ता है |
अपना अहवाल मुख़्तसर लिखना | अपना अहवाल मुख़्तसर लिखना | ||
21:33, 8 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
बाग़ में बस गया है डर लिखना
ऐसी बातें न भूल कर लिखना
पैर को पैर सर को सर लिखना
इस में क्या कि सोच कर लिखना
किस को फ़ुर्सत है कौन पढ़ता है
अपना अहवाल मुख़्तसर लिखना
अब भंवर है न कोई मौजे-ख़तर
अब नदी है उतार पर लिखना
बढ़ गया और कितना सन्नाटा
मेरी आवाज़ का असर लिखना
रात सो जाए दिन निकल जाए
उस इमारत को अपना घर लिखना