"घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
छो |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बग़ैर <br> | घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बग़ैर <br> | ||
− | जानेगा | + | जानेगा तू भी अब न मेरा घर कहे बग़ैर <br><br> |
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br> | कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br> | ||
− | + | जानूं किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बग़ैर <br><br> | |
काम उस से आ पड़ा है कि जिसका जहान में <br> | काम उस से आ पड़ा है कि जिसका जहान में <br> | ||
लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br> | लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br> | ||
− | जी में ही कुछ नहीं है हमारे | + | जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम <br> |
सर जाये या रहे न रहें पर कहे बग़ैर <br><br> | सर जाये या रहे न रहें पर कहे बग़ैर <br><br> | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर <br><br> | चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर <br><br> | ||
− | हर चन्द हो | + | हर चन्द हो मुशाहिद-ए-हक़ की गुफ़्तगू <br> |
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर <br><br> | बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर <br><br> | ||
05:55, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: ग़ालिब
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बग़ैर
जानेगा तू भी अब न मेरा घर कहे बग़ैर
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न
जानूं किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बग़ैर
काम उस से आ पड़ा है कि जिसका जहान में
लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर
जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम
सर जाये या रहे न रहें पर कहे बग़ैर
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर
मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तगू में काम
चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
हर चन्द हो मुशाहिद-ए-हक़ की गुफ़्तगू
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
बहरा हूँ मैं तो चाहिये दूना हो इल्तफ़ात
सुनता नहीं हूँ बात मुक़र्रर कहे बग़ैर
"ग़ालिब" न कर हुज़ूर में तू बार-बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर