भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चलत न चारयौ भाँति कोटिनि बिचारयौ तऊ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> चलत न चारयौ भा…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:16, 16 जनवरी 2010 का अवतरण
चलत न चारयौ भाँति कोटिनि बिचारयौ तऊ,
दाबि दाबि हारयौ पै न टारयौ टसकत है ।
परम गहीली बसुदेव-देवकी की मिली,
चाह-चिमटी हूँ सौं न खैंचौं खसकत है ॥
कढ़त न काढ़्यौ हाय बिथके उपाय सबै,
धीर-आक-छीर हूँ न धारैं धसकत है ।
ऊधौ ब्रज-बास के बिलासनि कौ ध्यान धँस्यौ,
निसि-दिन काटैं लौं करेजें कसकत है ॥6॥