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"दिपत दिवाकर कौं दीपक दिखावै कहा / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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दिपत दिवाकर कौं दीपक दिखावै कहा,
तुम सन ज्ञान कहा जानि कहिबौ करैं ।
कहै रतनाकर पै लौकिक लगाव मानि,
परम अलौकिक की थाह थहिबौ करैं ॥
असत असार या पसार मैं हमारी जान,
जन भरमाये सदा ऐसैं रहिबौ करैं ।
जागत और पागत अनेक परपंचनि मैं,
जैसें सपने मैं अपने कौं लहिबौ करैं ॥16॥