भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बात चलैं जिनकी उड़ात धीर धूरि भयौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> बात चलैं जिनकी…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:25, 16 जनवरी 2010 का अवतरण
बात चलैं जिनकी उड़ात धीर धूरि भयौ,
ऊधौ मंत्र फूँकन चले हैं तिन्हें ज्ञानी ह्वै ।
कहै रतनाकर गुपाल के हिये मैं उठी,
हूक मूक भायनि की अकह कहानी ह्वै ॥
गहबर कंठ ह्वै न कढ़न संदेश पायौ,
नैन मग तौलौं आनि बैंन अगवानी ह्वै ।
प्राकृत प्रभाव सौ पलट मनमानी पाइ,
पानी आज सकल संवारयौ काज बांनी ह्वै ॥19॥