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"चंद्रिका चकोर देखै निसि दिन करै लेखै / आलम" के अवतरणों में अंतर

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रीझिबे को पैड़ो अरु बूझ कछु न्यारी है ।
 
रीझिबे को पैड़ो अरु बूझ कछु न्यारी है ।
  
''' आलम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
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'''आलम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।'''
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10:56, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

चंद्रिका चकोर देखै निसि दिन करै लेखै ,
चंद बिन दिन दिन लागत अंधियारी है ।
आलम सुकवि कहै भले फल हेत गहे ,
कांटे सी कटीली बेलि ऎसी प्रीति प्यारी है ।
कारो कान्ह कहत गंवार ऎसी लागत है ,
मेरे वाकी श्यामताई अति ही उजारी है ।
मन की अटक तहां रूप को बिचार कैसो,
रीझिबे को पैड़ो अरु बूझ कछु न्यारी है ।

आलम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।