भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखि दूरि ही तैं दौरि पौरि लगि भेंटि ल्याइ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (३-देखि दूरि ही तैं दौरि पौरि लगि भेंटि ल्याइ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’ का नाम बदलकर देखि दूरि ही तैं द) |
|
(कोई अंतर नहीं)
|
11:58, 16 जनवरी 2010 का अवतरण
देखि दूरि ही तैं दौरि पौरि लगि भेंटि ल्याइ,
आसन दै साँसनि समेटि सकुचानि तैं ।
कहै रतनाकर यौं गुनन गुबिंद लागे,
जौलौं कछू भूले से भ्रमे से अकुलानि तैं ॥
कहा कहैं ऊधौ सौं कहैं हूँ तो कहाँ लौं कहैं,
कैसे कहैं कहैं पुनि कौन सी उठानि तैं ।
तौलौं अधिकाई तै उमगि कंठ आइ भिंचि,
नीर ह्वै बहन लागी बात अँखियानि तैं ॥3||