"कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाये है मुझ से / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे <br><br> | कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे <br><br> | ||
− | वो बदख़ू और मेरी | + | वो बदख़ू और मेरी दास्ताने-इश्क़ तूलानी <br> |
इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे <br><br> | इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे <br><br> | ||
− | उधर वो बदगुमानी है, इधर ये | + | उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी है <br> |
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझसे <br><br> | ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझसे <br><br> | ||
सँभलने दे मुझे ऐ नाउमीदी, क्या क़यामत है <br> | सँभलने दे मुझे ऐ नाउमीदी, क्या क़यामत है <br> | ||
− | कि दामाने ख़याले यार छूटा जाये है मुझसे <br><br> | + | कि दामाने-ख़याले यार छूटा जाये है मुझसे <br><br> |
तकल्लुफ़ बर तरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही, लेकिन <br> | तकल्लुफ़ बर तरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही, लेकिन <br> | ||
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे <br><br> | वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे <br><br> | ||
− | हुए हैं पाँव ही पहले | + | हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी <br> |
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझसे <br><br> | न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझसे <br><br> | ||
− | क़यामत है कि होवे | + | क़यामत है कि होवे मुद्दई का हमसफ़र "ग़ालिब"<br> |
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझसे <br><br> | वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझसे <br><br> |
05:19, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: ग़ालिब
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कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझसे
जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझसे
ख़ुदाया! ज़ज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उलटी है
कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे
वो बदख़ू और मेरी दास्ताने-इश्क़ तूलानी
इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे
उधर वो बदगुमानी है, इधर ये नातवानी है
ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझसे
सँभलने दे मुझे ऐ नाउमीदी, क्या क़यामत है
कि दामाने-ख़याले यार छूटा जाये है मुझसे
तकल्लुफ़ बर तरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही, लेकिन
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे
हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी
न भागा जाये है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझसे
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हमसफ़र "ग़ालिब"
वो काफ़िर, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझसे