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मदिरा के सामने झुक गया अमृत
चन्दन में व्याप गया विष
पानी से निकल पडी आग
अन्धा हो गया विवेक
पंगु हो गई बुध्दि
गूंगा हो गया ज्ञान
हो गया सर्वनाश।
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा