भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुनरावृत्ति / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:21, 17 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
पेट पर रखा गया पत्थर
दिल पर पहाड़
मन पर थोप दी गई बादलों की पर्त
भीगी आँखों से देखा गया सपना
धार-धार हुआ
हुआ बूँद-बूँद
न सीप का मुँह खुला
न बाँस की गाँठ
हवा की झोली में गया सब कुछ
पत्थर बनने के लिए दुबारा
बनने के लिए पहाड़ और बादल।
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा