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"छपनिया काल रे छपनिया काल / राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
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07:11, 20 जनवरी 2010 का अवतरण
मुझे इस गीत की कुछ ही पंक्तियाँ स्मरण हैं जो इस प्रकार हैं ;
ओ म्हारो छप्पन्हियो काल्ड फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.
बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी मिल जाये तो बात है घणी
म्हारो छपप्नीयो काल्ड फेरो अज भोल्डी दुनियाँ में.