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"ढालते जाँय इस जीवन को / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर
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06:51, 23 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
ढालते जाँय इस जीवन को
भगवान आप जैसा चाहे।
हमको सम्हालती रहें आप की
शरणागत वत्सल बाँहें।।
कैसे विकसे अन खिली कली
यदि नाथ डाल से टूट जाँय।
उस सुत की गति लो सोच स्वयं
जो माँ के उर से छूट जाय।
लकुटी विहीन भटकते अंध को
अंगुली थाम दिखा राहें----
हमको सम्हालती --------।।1।।
क्या दुर्गति मेरी झूठ या कि यश झूठ
या न सच संत -कथन ।
हर दुर्बल का दुख हरती
तेरी करूणा शोक - हरण ।
क्या भला-बुरा सोंचती कमीं
सुर-धेनु कल्पतरू की छाहें
हमको सम्हालती ------।।2।।
युग-युग की विषय-विकार अमा का
प्रियतम कर दो विलय-प्रलय ।
निज शिव-स्वरूप दे दीप्यमान
दिनकर का उर में करों उदय।
दिखला दो अपना मुख-मयंक
‘पंकिल’ चकोर बन अवगाहें-
हमको सम्हालती -------।।3।।